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May 26, 2017 | Autor: Arun Hota | Categoria: Contemporary Literature
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लीक से हटकर है 'पोस्ट बाक्स नं 203 नाला सोपारा'
प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुद्गल का सद्यतम उपन्यास ' पोस्ट बाक्स नं 203 नाला सोपारा'(सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित) पढकर मुझे लगा कि इधर प्रकाशित हिंदी उपन्यासों से यह विशिष्ट है। यूं देखा जाए तो चित्रा जी के ' आवां', ' एक जमीन अपनी' और 'गिलिगडू' उपन्यासों में विषय की पुनरावृत्ति नहीं है। एक सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यकर्ता होने के नाते आप महिलाओं, श्रमिकों, दलितों, वंचितों और उपेक्षितों के जीवन से बहुत अधिक परिचित हैं। इस उपन्यास में समाज की उस मानसिकता पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है जहां शारीरिक कमी, लैंगिक कमी के कारण ' हिंजडा', 'नपुंसक' अथवा ' किन्नर' आदि गालियां देकर मनुष्य को अमानवीय निर्यातनों का शिकार होना पडता है। विडम्बना है कि यह मानसिकता निम्न, मध्य, उच्च तथा आभिजात्य समाज में समान रूप से पायी जाती है। विनोद उर्फ बिन्नी उर्फ बिमली की कथा के माध्यम से ' अन्य' वर्ग के प्रति कथाकार ने अपने सरोकार को अत्यंत संवेदनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। महाभारत काल से लेकर आज तक इस उपेक्षित वर्ग को केवल घृणा, उपेक्षा और अत्याचार का शिकार होना पडा है। उन्हें समाज की मुख्यधारा में स्वीकार नहीं किया जाता है। लोक-लाज के भय से इन लोगों को परिवार से निकाल दिया जा रहा है। परिवर्तित समय और परिस्थिति में इनमें आत्मचेतना, संघर्ष चेतना और स्वाभिमान जगाकर वृहत्तर आंदोलन के माध्यम से इन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है। इससे भी बडी बात है कि मनुष्य के रूप में इनका महत्व स्वीकारा जा सकता है।
'अन्य-0' वर्ग के प्रति सत्ता के रवैये को भी उद्घाटित किया गया है। इस वर्ग में जो जुडाव, समर्पण और भलमंसाहत है उसे लेखक ने कथा-सूत्रों में पिरोया है। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निराश न होना,जूझते रहना और मंजिल तक पहुंचने का प्रयास करना, अदम्य जिजीविषा बनाये रखना इस उपन्यास की अद्वितीयता है। लीक से हटकर एक महत्वपूर्ण उपन्यास है 'पोस्ट बाक्स नं 203 नाला सोपरा'।
पूरा उपन्यास पत्रात्मक है। विनोद उर्फ बिन्नी उर्फ बिमली के पत्र मां वंदना बेन शाह को लिखे गये पत्रों से कथानक आगे बढता है। मां का कोई पत्र नहीं है। पत्रों के माध्यम से देश और काल की तमाम विसंगतियां, अंतर्विरोध और विडंबनाएं बडी शिद्दत के साथ चित्रित हुए हैं। संवेदना और मानवता के गुणों से भरपूर बिन्नी तथा उसकी मां के चरित्र को हृदयस्पर्शी ढंग से अंकित किया गया है। भाषा की सादगी पाठकों को बांधे रखती है। समाज की अनेकानेक गुत्थियों को उपन्यासकार ने बखूबी प्रस्तुत किया है। उपन्यास का उत्तरार्ध झकझोर कर रखने में समर्थ है। विषय तथा शैली दोनों ही दृष्टि से यह उपन्यास हिंदी कथा साहित्य को नई दिशा प्रदान करने की पूरी सामर्थ्य रखता है।
अरुण होता, 2 एफ धर्मतल्ला रोड, (दूसरा तल्ला) कस्बा, कोलकाता 700042, पश्चिम बंगाल

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